भाव से मिलते हैं भगवान
भाव से मिलते हैं भगवान
आस्था की प्रतिमूर्ति बन कर
जब भक्त भगवान के दर जाते हैं
तब भगवान भक्त को
अपने सर पर बैठा लेते हैं।।
नई-नई ऊंचाई को तब वह
आसानी से पा लेते हैं
ऐसे जैसे बंद ताले के किस्मत
मालिक आते खिल जाते हैं
आस्था की प्रतिमूर्ति.....
नई शुरुआत तब उसके लिए
कई सुर्खी-या बटोरने लगते हैं
भाग्य उसके तो ऐसे-जैसे
मिट्टी से सोने उगलते हैं
आस्था की प्रतिमूर्ति.....
कंकड़-कंकड़ शंकर हो जाते
मिलते उसको नील गगन हैं
चारो तरफ हरियाली उसकी
तमस कहीं न होते हैं
आस्था की प्रतिमूर्ति.....
धन दौलत माल खजाने से
घर उसके भर जाते हैं
कुछ भी कमी नहीं
उसको कभी महसूस होते हैं
आस्था की प्रतिमूर्ति.....
भाव से मिलते हैं भगवान
भाग्य न देखे जाते हैं
तन मन अर्पित जब
भक्त भगवान को कर देते हैं
आस्था की प्रतिमूर्ति.....