बेवफ़ा नाम ही सही
बेवफ़ा नाम ही सही
इश्क़ नहीं मुझपे ये तेरा इलज़ाम ही सही,
वफ़ा नहीं हासिल, तो बेवफ़ा नाम ही सही,
अब भी तस्कीं में, दर खुला है घर का,
तू न आये नहीं, आमद-ए-पैग़ाम ही सही।
क्यों ख़्वाहिश-ए-क़ज़ा में, करूँ मैं दिन ग़ुज़र,
ज़िंदगी न ठहरी मुझे, इक इबहाम ही सही,
आ गए हैं हम यहाँ, मगर क़दम कहाँ रुके,
मौत ये ज़िंदगी का, आखिरी मुक़ाम ही सही।
सर झुकाना "शौक़" मेरी फ़ितरत में नहीं है,
मुतक़ाबिल इसमें ग़र्दिश-ए-अय्याम ही सही,
क्यों छोड़ें कि हसरत है, तेरे मिलने की इससे,
ख़ुदाया ये हसरत, ख़्वाहिश-ए-नाक़ाम ही सही।
अपने आशियाँ का हूँ ख़्वाहाँ फिर से नाक़िद,
तेरी नज़र में ये, गोशा-ए-बदनाम ही सही,
क्या मुझपे असर करेगा, तंज़-ए-अहल-ए-जहॉं,
है मुझे सरापा क़ुबूल,बदगुमानी अंजाम ही सही।