STORYMIRROR

Saurabh Sood

Drama Romance Tragedy

2.8  

Saurabh Sood

Drama Romance Tragedy

आलम-ए-परवाज़ होता

आलम-ए-परवाज़ होता

1 min
27.3K


मेरे होने पे मुझको क्या ऐतराज़ होता,

बस अगर यूँ कि मैं बेआवाज़ होता...


हर दफ़ा यूँ उठती थी महफ़िल-ए-यार,

ज़बान पे दास्ताँ मेरी, हाथों में साज़ होता...


मेरी ख़ामोशी पे उठते हैं सद-सवाल,

कोई तेरे तग़ाफ़ुल का भी गम्माज़ होता...


हमदर्द तो कई पा जाता हूँ मैं अब भी,

इस ग़म का भी मेरे, कोई चारासाज होता...


बेमौत मरते हैं हर शब तेरी चाह में हम,

क़ाश कि नई हयात का भी कभी आग़ाज़ होता...


और नहीं थी ख़्वाहिश दिल-ए-बेज़ार की,

बस कभी यूँ ही, आलम-ए-परवाज़ होता...


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama