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Saurabh Sood

Drama Fantasy

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Saurabh Sood

Drama Fantasy

दिल बुरा भी क्यों हो

दिल बुरा भी क्यों हो

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ग़र नहीं भला,

तो दिल बुरा भी क्यों हो,

वो ग़ैर सही,

मेरी बात से ख़फ़ा भी क्यों हो।


सौग़ात-ए-ज़ीस्त है,

ख़ुदा का शुक्र अता कर,

ग़र नहीं मौत तो,

ज़िन्दग़ी से ग़िला भी क्यों हो।


हमको नहीं इजाज़त,

तेरे कूचे में आमद की,

जो नहीं मंज़िल,

तो मुझको रास्ता भी क्यों हो।


मैं क्यों अपने सर,

तेरा ये इलज़ाम भी ले लूँ,

जो नहीं मुझपे वफ़ा,

तो नाम बेवफ़ा भी क्यों हो।


दिल बयान-ए-दर्द से,

लरजता है मेरा पर,

हासिल नहीं ज़ुबाँ,

तो ये बेनवा भी क्यों हो।


क्यों हो तसल्ली-ए-जाँ को,

इक दर खुला मुझे,

जब नहीं साक़ी,

तो यहाँ मयक़दा भी क्यों हो।


क्यों न रो-रो के अश्क़ों का,

सैलाब मैं ला दूँ,

ग़र नहीं इज़्ज़त तो रुस्वाई की,

परवा भी क्यों हो।


जबकि नहीं हासिल,

जबीं रखने को संग-ए-आस्ताँ,

जीने को न आशियाँ,

तो मदफ़न की जा भी क्यों हो।


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