बचपन
बचपन
पहले हँसा, फिर रोना, अब मुस्काया है,
बालक ही तो है, अपनी ज़िद पर उतर आया है।
अपनी अठखेलियों से सबको लुभाया है,
अपने छोटे-छोटे शब्दों से तुतलाया है,
देखते ही देखते चाँद-सा उतर आया है,
कनखियों से देखकर अपनी ही अदाओं पर इठलाया है,
बालक ही तो है, अपनी ज़िद पर उतर आया है।