बचपन की ख़ुशी
बचपन की ख़ुशी
यादों के साये में सबसे छुपाके,
संभाला है बचपन को दुनिया की नज़र से बचा के
वो बेफ़िक्री से हँसना,
जब मन घबराए रो लेना,
ज़माना हो गया अपनी हस्ती को भुला के।
अब चेहरे पे एक पहरा है,
कि गम क्यों ठहरा है
हमारी ख़ुशी किसी की क़ाबिलियत का पैमाना है
हमको हँसते ही जाना है।
ऐसा नहीं ज़िंदगी में ख़ुशी नहीं है
पर जैसे वो अपनी नहीं है
कभी उम्र कभी ज़िम्मेदारी का बहाना है,
हमको हँसते ही जाना है।
अकेलेपन में भी ख़ुश थे
अपनी ख़ुशी के एक ही हक़दार थे
जबसे हमारी ख़ुशी किसी की
काबिलियत का पैमाना हो गया।
हमारा फर्ज़ हर वक़्त
मुस्कुराना हो गया
यूँ तो कोइ भी कमी नहीं है,
पर हमें खुल के हँसे ज़माना हो गया।।
