बाज़ी
बाज़ी
वक़्त से लगाई है आज एक बाज़ी,
खुद को साबित कर जीतनी ही है हर हाल में ये बाज़ी,
हम अपना सब दाव पर लगा बैठे हैं,
राहों में चलते हुए काफी कुछ हम गवा बैठे हैं,
सब्र कर ए मुसाफिर तेरे सफ़र को मंज़िल भी मिल जाएगी,
तू चलता चल तेरे इंतज़ार को राहत मिल ही जाएगी,
ज़ख्म तेरे कुदरत भर देगी तू बस हर सबक को याद रखना,
जब हालात तेरे बस में ना हो तू उस खूदा के सजदे करना,
नम आखे लिए निकला है तू तलाशने कुछ बूंद खुशी के पल,
होगी बरसात रहमत की तेरे आंगन भी फिर लौटेंगे वो पल,
ना खोज सच्चा साथ इस झूठ के बाज़ार में,
पग पग पर बदलता मिलेगा इंसान तुझे इस बाज़ार में,
मैंने जोड़े थे रिश्तों के धागे विश्वास की गांठ से,
हर कोई खेला अपने अपने तरीकों से मेर पाक जज्बात से,
जोड़ने निकला जो टुकड़े कांच के जो मेरे अतीत में बिखरे है,
बेवजह ज़ख्म मेरे ही हाथों को मिले है,
पहन कर एक नया चोला बन बैठा मै मुसाफ़िर,
खोई मंज़िल को पाने निकला हूं मै एक मुसाफिर,
खुदा तेरे दर पर आकर जान ही लिया कुरबत की हकीकत को
तेरे पास आकर मैंने जाना अपनी हकीकत को,
हर साथ ने मेरे हाथ बीच राह में छोड़ा है,
शीशे सा पाक था दिल तभी सब ने टुकड़े टुकड़े कर छोड़ा है,
थाम कर काग़ज़ कलम हम कुछ गीत लिखने निकले है,
बंजारे बन हम फिर एक नई धुन खोजने निकले है,
सुन कर दर्द से भरे गीत मेरे पैर भी थिरकेंगे,
इस सफ़र - ए - ज़िन्दगी में मुसाफिर मिल कर बिछड़ेंगे,
दिल से लगाया था जिन्हें उनके हाथों में खंजर थे,
सच की माला जपने वाले इस जग के सारे जोगी झूठे थे!
