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Anshika Awasthi

Comedy Thriller

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Anshika Awasthi

Comedy Thriller

अतिथि देवो भव

अतिथि देवो भव

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एक अरसे से कुछ लिखा नहीं 

शायद नया कुछ दिखा नही , 

और ये कलम उठे भी तो रुक जाती है 

मन में कुछ अटकन सी आती है 


यूं बेमिजाज लिखना भी क्या लिखना 

अब तो कविताएं भी एहतियात ही बताती हैं

ना जाने कितनी दफा आह! भरकर बैठे हैं

हमारी सांसें भी अब लंबी खींची जाती हैं

ना ना ये राहत की सांस नहीं,

 

ये ऊब तो खिड़की से झांकते उभर आती है 

इस लम्हा तबियत भी जरा सख्त है 

रोज सुबह चाय की प्याली काढ़ा जो पिलाती है,

वही अखबार, वही समाचार,


अब तो फिल्में भी वही दोहराती है

वैसे अतिथि देवो भव पर

ये कहना हमारी मजबूरी पड़ जाती है 

अरे भाई काफी दिन मेहमानबाजी हुई 

जा कोरोना तुझे भी तेरी मां बुलाती है।


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