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Anshika Awasthi

Tragedy

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Anshika Awasthi

Tragedy

अमर बलिदान

अमर बलिदान

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हुए कुर्बान जितने भी 

अमर बलिदान था उनका

लहू जो बह गया सबका 

हिन्द सम्मान था उनका

बेड़ी में बंधे उन हाथ में

जंजीर गोरी थी


झुके पर शीश ना थोड़ा 

यही अभिमान था उनका 

हुए कुर्बान जितने भी 

अमर बलिदान था उनका

घरों में बिलख रहे नन्हे

बड़े चावुक तले गुम थे


भेड़ियों के दम का बस

यही प्रहार था उनका 

हुए कुर्बान जितने भी

अमर बलिदान था उनका

स्वप्न में बह रहा भारत

 

स्वतंत्र आज़ाद था उनका 

मशालें जल उठी मन में 

हिन्द स्वराज था उनका 

हुए कुर्बान जितने भी 

अमर बलिदान था उनका

सहे अब एक ना उनकी 


शिखर उन्माद था उनका

लहू जो बन गया ज्वाला 

यही आगाज़ था उनका 

हुए कुर्बान जितने भी 

अमर बलिदान था उनका।


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