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Savita Verma Gazal

Romance

4  

Savita Verma Gazal

Romance

अथाह प्रेम

अथाह प्रेम

1 min
221


दिल लगाया भी तो

तुमसे पत्थर से।

खैर कहते हैं न कि

प्रेम में वो ताकत होती है

जो पत्थर को भी पिघला

देती है और..

मेरे प्रेम की तासीर भी देखना

खींचकर तुम्हें ले ही आएगी

आगोश में।

तुम पत्थर नहीं जानती हूँ

तुम तो सागर हो ..हां सागर

अथाह प्रेम का सागर

मैं एक नदी।

देखना एक दिन तुम्हें

अहसास करा ही देगी

मेरी मोहब्बत कि

तुम पत्थर नहीं।

प्रेम हो और जब ये अहसास होगा

तो तुम, तुम नहीं रह जाओगे।

तब तुम इस नदी में मिलकर

हो जाओगे

अथाह प्रेम का सागर और तब

तुम्हें भाने लगेगा पंछियों का कलरव।

कोयल की कुहुक और पपिहरे का बोल भी।

रहट के झर-झर बहते पानी में तुम सुनोगे फिर 

कोई संगीत।

हवा के झोंको से हिलते पत्तों की 

गड़गड़ाहट भी कानों को लगने लगेगी

प्यारी बहुत प्यारी

विश्वास न हो तो देखो

दर्पण में अपनी आंखों को।

कितनी गहरी हैं और डूब चुका है कोई

मुझ सा।



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