होली के दोहे
होली के दोहे
बरसाने में उड़ें हैं, रंग, अबीर, गुलाल कान्हा जा मथुरा बसे, राधा करे मलाल।।
तन मन रंगो सांवरे , अब अपने ही रंग। खेलूंगी मैं फाग तो , सुन तेरे ही संग ।।
मोर मुकुट सिर सोहता, और अधरन मुस्कान। बंशीधर कान्हा सुनो, ओ मेरे भगवान।।
नैनन में जब श्याम हों, कोई नहीं सुहाय। सुध-बुध सब मैं भूलती, मुरली मधुर बजाय।।
मन रंगा हरि के रंग , रंग न दूजा भाय। मन में सूरत श्याम की, दूजा नहीं सुहाय।।
लाल नहीं पिला नहीं रंग मोहे भाये रे रंग ले मुझे मेरे श्याम तू अपने ही रंग में।।
रीत सब भूल बैठी प्रीत ऐसी भायी रे भूल गयी सुध बुध रंग तेरे ही रँग में।।
कर गयी जादू कैसा तेरी ये मुरलिया। देखा न जादू कहीं ऐसा जो जादू तेरे भंग में।।