मातृ भाषा का प्रचार-प्रसार जीवन का लक्ष्य। अपनी लेखनी को जन-जन तक पहुंचाना। "दर्द की व्यथा नहीं,मैं कोई कथा नहीं। धार हूँ तलवार की,मैं कोई शीशा नहीं।। सविता वर्मा "ग़ज़ल"
सुध-बुध सब मैं भूलती, मुरली मधुर बजाय सुध-बुध सब मैं भूलती, मुरली मधुर बजाय
लरजते अधरों पर, खनकती चूड़ी और छनकती पायल पर उकेरते हो अपनी कविता लरजते अधरों पर, खनकती चूड़ी और छनकती पायल पर उकेरते हो अपनी कविता
क्यों रोती है बहना तेरे आंसू व्यर्थ ना जायेंगे । तेरी राखी वाली कलाई बनकर के मैं आऊँ क्यों रोती है बहना तेरे आंसू व्यर्थ ना जायेंगे । तेरी राखी वाली कलाई बनकर के...
जहाँ सभी को मिल पाएगी इज्जत की रोटी। जहाँ गरीबी के कारण कोई ना अपनी जान गंवाएगा। जहाँ सभी को मिल पाएगी इज्जत की रोटी। जहाँ गरीबी के कारण कोई ना अपनी जान गं...
जो है यही पल तो है बस जी रही हूं जी भर इसी पल को। जो है यही पल तो है बस जी रही हूं जी भर इसी पल को।
कहर कोरोना का बड़ा ज़ालिम है जान हैं तो तब ही जहान हैं।। कहर कोरोना का बड़ा ज़ालिम है जान हैं तो तब ही जहान हैं।।
कहर कोरोना का बड़ा ज़ालिम है जान है तो तब ही जहान है। कहर कोरोना का बड़ा ज़ालिम है जान है तो तब ही जहान है।
दूरियों की सीलन हटे और प्रेम का संचार हो। दूरियों की सीलन हटे और प्रेम का संचार हो।
मैं आज भी कर रही हूँ प्रतीक्षा तुम्हारी ...पर शायद भूल गये हो तुम ....!! मैं आज भी कर रही हूँ प्रतीक्षा तुम्हारी ...पर शायद भूल गये हो तुम ....!!
इंसान कहाँ खो गया।कहीं दिखायी देता ही नहीं आजकल। जिधर देखो भीड़ ही भीड़दंगा ही दंगा। इंसान कहाँ खो गया।कहीं दिखायी देता ही नहीं आजकल। जिधर देखो भीड़ ही भीड़दंगा ही ...