अशुद्ध अछूत – नारी
अशुद्ध अछूत – नारी
वंचित रखा मुझको
जिन खास दिनों की खातिर
मुझको मेरी दिनचर्या से
पूजा से भोजन सृजन प्रक्रिया से
वो खास नहीं थे दिन
बस तेरी मलिन सोच का हिस्सा थे
जिन खून के धब्बों को तूने
अपयश के संज्ञान दिए
मुझको माना अछूत और
अपनी विकृत बुद्धि के प्रमाण दिए
सब दोष नहीं तेरा है
ये मैंने माना है फिर भी पुरुष था तू
तूने कैसे इन भावों को समर्थन थे दिए
तू शिक्षक है अधिवक्ता है
तू इनसे ऊपर एक चिकित्सक है
फिर कैसे तूने रूढ़िवादी कुत्सित
विचारों को सम्मान दिए
वंचित रखा मुझको
जिन खास दिनों की खातिर
मुझको मेरी दिनचर्या से
पूजा से भोजन सृजन प्रक्रिया से
वो खास नहीं थे दिन
बस तेरी मलिन सोच का हिस्सा थे
जिन खून के धब्बों को तूने
अपयश के संज्ञान दिए
मुझको माना अछूत और
अपनी विकृत बुद्धि के प्रमाण दिए
कैसे क्यूं कर मुझे अशुद्ध कहा
कैसे क्यूं कर वंचित रखा
एक अँधेरे कमरे में
क्यों कैद कर मुझे रक्खा
जितने भी घर में अनुष्ठान हुए
मैं नारी हूँ मैं नारी हूँ
मुझको हर माह , महा वारी होगी
जिसके चलते तेरे वंश की
मेरी कोख में प्रस्फुटन
और रखवाली होगी
इसी सुरक्षित आख्या में फिर
उसकी सृजन समीक्षा होगी
मैं जिसके कारण माता कहलाऊँगी
वंचित रखा मुझको
जिन खास दिनों की खातिर
मुझको मेरी दिनचर्या से
पूजा से भोजन सृजन प्रक्रिया से
वो खास नहीं थे दिन
बस तेरी मलिन सोच का हिस्सा थे
जिन खून के धब्बों को तूने
अपयश के संज्ञान दिए
मुझको माना अछूत और
अपनी विकृत बुद्धि के प्रमाण दिए।