उम्मीद
उम्मीद
जहाँ देखो खून है, लूट है, बलात्कार है,
जगत में चहुओर दुःखों की भरमार है।
कोई दूसरों को लूट रहा है,
कोई खुद को कत्ल कर रहा है,
कोई बेवा बेआबरु हो रही है,
कोई दरन्दिगी पे अमादा है,
कोई भ्रष्टाचार में घिर गया है,
कोई बाइज्जत बरी हो गया है,
किसी का लाल शहीद हो गया है,
किसी का दहशतगर्द हो गया है,
आज फिर एक हादसा हुआ है,
पुराने हादसों की तफ्तीश जारी है,
सरकार ने मुआवजे का ऐलान किया है,
घर का इकलौता चिराग बुझ गया है,
कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी है,
जनता पे लाठीचार्ज हुआ है,
किसी का कर्ज माँफ हो गया है,
कोई कर्ज के बोझ से मर गया है,
सब्जियां फिर महँगी हो गई है,
शराब के दाम अब कम हो गये हैं,
आज स्वच्छता अभियान चलाया गया है,
कल कुछ लोग कूड़े के ढेर में दब कर मर गए हैं,
वृक्षारोपण का प्रचार हो रहा है,
जंगलों की कटाई बदस्तूर जारी है,
थाने में घरेलू हिंसा का केस दर्ज हुआ है,
चार बच्चों की माँ प्रेमी संग फरार हो गई है,
बिटिया ने देश का नाम रोशन किया है,
कुछ युवकों ने बच्ची का बलात्कार कर दिया है,
शहर में संतों का समागम हुआ है,
फिर किसी बाबा पर शोषण का आरोप लगा है,
गौ तस्करी के शक में पीट कर हत्या कर दी गई है,
गौशाला में हजारों गायें भूँखी मर गई हैं,
गरीबों को आवास देने की योजना आयी है,
कुछ गाँव खाली कराये जा रहे हैं,
बाढ़ में लाखों घर तबाह हो गये हैं,
सूखे ने सबकुछ छीन लिया है,
दो देशों में जंग की तैयारी है,
लगता है फिर किसी समझौते की बारी है,
टी०वी० पर तबाही परोसी जा रही है,
चैनलों की टी०आर०पी० बढ़ गई है,
पक्ष ने आज एक वादा किया है,
विपक्ष ने फिर आलोचना की है,
आरोप - प्रत्यारोप का दौर जारी है,
आज तुम्हारी कल हमारी बारी है,
कोई डेंगू तो कोई कोरोना का शिकार है,
हर तरफ बस हाहाकार है।
क्या लिखूँ?
क्या - क्या लिखूँ?
कितना लिखूँ?
यही सब तो हो रहा है,
यही सब तो, होता आ रहा है,
नया क्या है?
बदला क्या है?
हर तरफ दुःख ही तो है—
दुःख! अपार दुःख!
ज़िन्दगी है या अखबार की कतरन...
फिर भी एक "उम्मीद" है,
उम्मीद कल्कि की,
उम्मीद जजमेंट डे की,
उम्मीद कयामत की,
उम्मीद सृष्टि के नव-सृजन की,
उम्मीद इस रात के सुबह की!