नन्हीं - एक राजकुमारी
नन्हीं - एक राजकुमारी
एक घर में जन्मी एक नन्ही राजकुमारी।
छोटी सी भोली भाली और बहुत ही प्यारी।
उसके नन्ही किलकारियों से गूंज उठा सारा घर,
वक़्त भी कभी ठहरता नहीं मगर।
जब सीखा उसने चलना थोड़ा पाई पाई।
तभी उस घर में एक और राजकुमारी आई।
माँ ने भेज दिया नन्ही को उसके ननिहाल,
छोड़कर वहां उसे फिर ना पूछा उसका हाल-चाल।
पर नन्ही मासूम थी साफदिल भी,
ढूँढ ही लेती थी खुशी हर तकलीफ में भी।
नानी उसे राजकुमार की कहानियां सुनाती थी।
नन्ही अपने राजकुमार के सपने बुनते नींद में खो जाती थी।
भोली जो थी, मासूम भी अनजान थी इस जहान से,
बिलकुल बेखबर थी जिंदगी में आने वाले तूफान से,
एक दिन उसके मां पापा आए
और जबरदस्ती उसे घर ले आए।
वह दूर हो गई अपनी प्यारी नानी से,
उसकी प्यार भरी थपकी और कहानी से।
वह देखती थी रोज अपने मां-बाप को झगड़ते हुए,
चीखते, चिल्लाते और आपस में लड़ते हुए।
वह डर गई, सहम गई, रहने लगी उदास।
तभी एक भयंकर राक्षस आया उसके पास,
वो उसे नोच नोच कर खाने लगा,
वो रोती अगर दर्द से, तो उसे डराने लगा।
नन्हीं तो इतनी मासूम थी कि उसे पता भी नहीं चला कि
कोई दरिंदा उसकी मासूमियत छीन ले गया।
वह रोती, मरती अपने ही अंदर बार-बार,
पर कहती किसे, कौन था जो सुन सके उसकी पुकार।
उसने सीख लिया था दर्द के साथ जीना,
आंसुओं को अपनी आंखों में ही पीना।
पर वक्त ने भी आखिर अपना रंग दिखाया।
काल ने राक्षस को खाकर नन्ही को छुटकारा दिलाया।
पर वक्त भर नहीं सका उसके जख्म,
कोई भी खुशी कर ना पाई उसके दुख कम।
वह मर चुकी थी अंदर से, खत्म हो गई थी।
आंखें उसकी सूख चुकी थी रोते-रोते,
तकलीफ़ भी अंदर ही सो गई थी।
तभी हमारी नन्ही के जीवन में एक राजकुमार आया।
उसने उसे हँसाया, फिर से जीना सिखाया।
वो हंसने लगी, मुस्कुराने लगी।
चहकने लगी, उसे मन ही मन चाहने लगी।
पर वो तो एक बहरूपिया था जो भेष बदल कर आया था।
काला था दिल का वो, झूठ धोखे और फरेब का साया था।
जैसे ही नन्ही को पता चला उसका दिल तो टूट गया।
शीशे का था शायद इसलिए इतनी जल्दी फूट गया।