दर्द और स्याही
दर्द और स्याही
जब दर्द स्याही में बहता है तो जमाना इस दीवाने को शायर कहता है।
सीने से कागज तक का सफ़र आसान नहीं होता
पर कागज भी आखिर चुप कहां रहता है।
जब दर्द स्याही में बहता है
तो कलम और कागज दोनों रोते हैं ।
मिलते हैं सिर्फ एक पल के लिए,
फिर तो दोनों तनहा ही होते हैं।
कलम छेदती है दिल कागज का बार बार,
पर कागज मुस्कुराकर उस का हर वार सहता है।
जब दर्द स्याही में बहता है।
