STORYMIRROR

Premlata Sinha

Tragedy Crime

4  

Premlata Sinha

Tragedy Crime

खरोंच

खरोंच

2 mins
203

नन्ही सी जान थी वो तुने जिसके जिस्म को नोच दिया...

जिस्म के ज़ख़्म तो फिर भी भर जाते...

तुने तो उसकी रूह को ही खरोंच दिया !!


प्यारी सी कली थी वो..

तुने उससे तोड़ के, रौन्ध दिया उसके पंखों को..

दर्द से करहाई थी, लथ पथ थी वो ख़ून से...

झपटा था तू जानवरों सा, उस नन्ही मासूम पे...

तेरे गंदे इरादों ने उसके ज़मीर को पोंछ दिया...

जिस्म के ज़ख़्म तो फिर भी भर जाते, अरे बेरहमी!!!

तूने तो उसकी रूह को ही खरोंच दिया !!


जब फाड़े होंगे कपड़े उसके, तुझे शर्म तो ना आई होगी...

चीखी होगी वो दर्द में, तब तेरी रूह भी थर्राई तो ना होगी...

रोना सुन के उसका, एका एक घबराई तो तेरी परछाई भी होगी...

अपनो की शक्ल में राक्षस निकला तू, तेरे ज़हन में जाने कितनी बुराई ही होगी...

माँ-पापा का ग़ुरूर बनना चाहती थी, तुने बेशर्मो की तरह उसी को चूर- चूर कर दिया...

जिस्म के ज़ख़्म तो फिर भी भर जाते...

तूने तो उसकी रूह को ही खरोंच दिया !!


कल ख़बर बनेगी वो अखबारों में, चर्चा सारे बाज़ार होगा...

रैलियां निकलेंगी उसके नाम की, हर नुक्कड़ पे कैंडल मार्च भी होगा...

बनाएंगे बहाने सिस्टम वाले, किसी के पास ना जवाब होगा...

सुनामी उठी फिर इंसाफ की, फिर आख़िर में... सब ख़ाक होगा...

बन्द होंगे ढकोसले इंसाफ पाने के, आख़िरकार तू आज़ाद होगा...

फिर लगाएगा घात तू एक नई जान की शिकार को..

फिर खेलेगा खेल वहशत का, कर शर्मिन्दा किसी परिवार को,

जैसे मां ने तेरी, तुझे यही करने को जन्म दिया...

जिस्म के ज़ख़्म तो फिर भी भर जाते...

तूने तो उसकी रूह को ही खरोंच दिया !!


Rate this content
Log in

More hindi poem from Premlata Sinha

Similar hindi poem from Tragedy