बलात्कार
बलात्कार
बलात्कार
किसका कुसूर ?
हुआ किसका,
स्वाभिमान चूर।
इस बात पर अकसर
खूब होता वाद- विवाद,
कोई क्या समझे उसकी दशा,
जिसका जीवन हुआ बर्बाद।
सत्ता की गलियों में भी,
खूब हुआ था चर्चा,
उसने पहना क्या था,
कहां गई थी,
मनचलों का दिल क्यों मचला।
वो नाबालिक दिखता खबरों में,
जो दरिंदगी पे उतर आया,
आबरू नोचते वक्त
जिसे न रत्ती तरस था आया।
वो, जिसकी हवस की भूख ने,
निर्दोष जिंदगी निगली,
फिर क्यों उसकी फांसी पर,
कई धड़कनें पिघली।
जो वो किसी मां का जना,
तो निर्भया कहां से उतरी थी,
वो थी कौन?
थी किसकी दोषी,
किस अपराध की सजा ये भुक्ति थी,
सात साल के लंबे सफर से,
क्यों इंसाफ की गाड़ी गुज़री थी।
और उस पर कुछ कुतर्क कर्ता,
कपड़ों पे जो तंज कसता,
तुझे नीयत का खोट
न नज़र था आया,
तेरी तंग सोच से
जग घबराया।
दिखे कपड़ों का दोष,
तो एक बात भी बोल,
ये जो साड़ी, सूट में
लिपटी अस्मिता,
इस पर क्यों दरींदा झपटा,
यहां तो कोई उत्तेजना भी न थी,
फिर यहां क्यों मनचला फिसला।
ये संस्कार ही थे,
उस अभागन के,
तेरे जैसी औलाद
जिसने जनी थी,
किसी नारी की इज्जत
लूट के,
वो कोख भी
कटघरे में खड़ी थी।
नित नए चीर हरण
इस भरी सभा में,
फिर द्रौपदी लज्जित,
अखबारों में
ये दुःशासन, दुर्योधन कितने जन्में,
क्यों इज्जत नीलाम बाजारों में।
अब ये खेल और न होगा,
दुर्गा को काली बनाना होगा,
इन वहशी दरिंदे की हवसी आग का ,
वध हमें ही करना होगा।
कैंडल मार्च से बात न बननी,
अब सीधा इंसाफ ही करना होगा,
बलात्कारियों की फेहरिस्त से,
नाबालिक शब्द को हटना होगा।
इंसाफ की राह को लंबे समय की,
प्रक्रियाओं को बदलना होगा।
सबसे ज़रूरी, हमारे संस्कार,
प्रतिज्ञा करो, जनेंगे ऐसी औलाद,
मेरी कोख पे जिसको फक्र होगा,
समाज की हर एक नारी का,
सम्मान उसका फर्ज़ होगा।
और बेटी ऐसी जनें जो ऐसे,
दरिंदो का सर कुचलेगी,
अपनी आबरू की रक्षा कर सके जो,
हर घर अपराजिता जन्मेगी।
बलात्कारियों का अपराध अक्षम्य है।
ज़रूरी है कि उन्हें वक्त रहते
सही कानूनी सजा दी जानी चाहिए।
