बलात्कार
बलात्कार
कब तक बेटियों पर होता रहेगा अत्याचार,
कब रुकेगा बेटियों से बलात्कार,
ये इंसानी सोच एक दूषित प्रवृति है
जिसे रोकना अब बहुत जरूरी है।
आए दिन ऐसी घटनाएं जब आम होती है
बेटियों पर बलात्कार, हत्या,
एसिड अटैक सरे आम होती है,
रोज हृदय विदारक ऐसी घटनाएं सुनी जाती हैं,
तो दिल बैठ जाता है,
ऐसी घटनाओं से जिस्म सिहर जाता है,
तब सर शर्म से झुक जाता है,
बेटियों के लिए फिक्रमंद हो जाता है।
सामाजिक पतन, नैतिक मूल्यों का जब ह्वास होता है,
दुष्प्रवृत्तियों का समाज में वास होता है
हर ओर फैलता नशा,जुर्म, व्यभिचार
जो इंसानी सोच को विकृत कर देता है,
गलत राह में बहकने को मजबूर कर देता है,
तब बेटियां, बच्चियां उन्हें शिकार नजर आती है,
कोई गुड़िया, मनीषा, अशिफा,परी
बलात्कार का शिकार हो जाती है।
स्त्री देह उनकी काम वासना का केंद्र बन जाता है,
दुर्बल मानसिकता उत्तेजना से इंसान
मर्यादाएं भूल जाता है,
तब उनकी यौनिकता अपने चरम पर होती है,
और यही विकृत मानसिकता राक्षसी प्रवृत्ति का कारण बनती है।
जब हर तरफ अंधेरगर्दी,डर,और खौफ का बोलबाला हो,
सामाजिक संस्कारों से दूर तक न कोई नाता हो,
तब बेटियां बच्चियां ऐसे माहौल में
खुद को डरी सहमी पाएंगी,
बाहर तो क्या घर के अंदर भी छली जाएंगी,
आसपास उन पर उठती
घूरती नजरों से वो हरदम डरेंगी
कैसे संभले कैसे बचे
बस इसी की फिक्र में रहेंगी,
हमें उनका आत्मविश्वास बढ़ाना होगा,
शारीरिक, मानसिक दुर्बलता से सबल बनाना होगा,
विपरीत परिस्थितियों से लड़ना सिखाना होगा,
क्या सही क्या गलत का भेद बताना होगा।
अगर डरी सहमी खुद को लाचार पाएंगी,
उन्हें परेशान करने वालों की हिम्मत बढ़ जाएगी,
फिर ऐसे में कौन उन्हें बचाएगा,
कौन उसकी रक्षा कर पाएगा।
देश में कानून को भी सख्त बनाना होगा,
सख्ती से इन व्यभिचारियों को सबक सिखाना होगा,
कमजोर कानून, देरी का इंसाफ को दुरुस्त करना होगा,
शासन, प्रशासन और पुलिस को भी अपना ढर्रा बदलना होगा।
बेटियों पर बलात्कार और अत्याचार को
धर्म,जातियों के चश्मे से दूर रखना होगा,
जो भी दोषी हो उसे सख्ती से निपटना होगा,
तभी बेटियां, बच्चियां खुले आसमान में सांस ले पाएंगी,
अपने आत्मबल से समाज को एक नई दिशा दे पाएंगी।