देवी
देवी
देवी तू क्यों इतनी लाचार है
तू अन्नपूर्णा,
तू शारदा,
तू पद्मावती,
तू वीरांगना,
तेरी कोख से जीवन दान है,
तेरे मन में सबका सम्मान है,
फिर क्यों तुझसे दुर्व्यवहार है,
देवी तू क्यों इतनी लाचार है...
तू कल्याणी,
तू गार्गी,
तेरा अनुशासन तेरी पहचान है,
तेरा त्याग तेरा श्रृंगार है,
तू शीतल है,
तुझ मे ममता,
फिर क्यों तेरा बलात्कार है,
देवी तू क्यों इतनी लाचार है...
तू सिया हा उस राम की,
तू राधा हा उस श्याम की,
तू सती हा तू द्रौपदी,
तू ही दुर्गा और सरस्वती,
हर वीर से पहले तेरा नाम है,
तेरे साथ ही वो धनवान है,
फिर क्यों ना जय-जय कार है,
देवी तू क्यों इतनी लाचार है...
तेरे मौन मा समझ है,
तुझसे मकान घर है,
तेरा आसमान कहा नीला है,
तेरे हसने से खुशियों का मेला है,
तुझे चुल्हों के धुएं मे भी स्वांस है,
मात्र कुछ कोमल शब्दों की आस है,
फिर क्यों आरोप भरमार है,
देवी तू क्यों इतनी लाचार है...
तेरे अंग पर जो छुअन थी,
तेरे हृदय मे जो चुभन थी,
तेरे बदन की उसे हवस थी,
तेरी मासुमियत की ना कदर थी,
तू बाल थी,
तू जवान थी,
तू वृद्ध थी,
अब तू बेकार थी,
फिर भी तेरी चाल चलन खराब है,
देवी तू क्यों इतनी लाचार है...
तू ही बहन,
तू ही पुत्री,
तू ही मैया,
तू अर्धांगिनी,
तू लाज शरम,
तुझ पर पर्दा,
तू ही घूंघट,
तू ही बुरखा,
वो तो नग्न भी युवराज है,
फिर भी तुझ पर धिक्कार है,
देवी तू क्यों इतनी लाचार है...
तेरे अस्त्र-शास्त्र सब बेकार है,
तेरे अंगरक्षक ही गुनहगार है,
लाखो दुर्योधन इस सभा में,
और भीम बहाता अश्रु धार है,
देवी तू क्यों इतनी लाचार है...
तू बंधी हा मोह के जाल मे,
सुहाग मे, रिवाज मे,
अबला होने के दाग मे,
तू ना स्वाभिमानी,
तू अभागीनी,
तुझे खुद पर ना विश्वास है,
इसलिए देवी होकर भी तू लाचार है,
तू लाचार है...