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Mens HUB

Tragedy Crime Others

4.5  

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Tragedy Crime Others

मरा नहीं, समाज ने मारा है

मरा नहीं, समाज ने मारा है

2 mins
182


Tribute to Every Men who sacrificed his life due to Domestic VIolence


जिंदगी जिया वो सिर उठाकर

लोगों का परिवार चलाया दिन-रात कमा कर 

रहा स्वाभिमान और आत्म सम्मान के साथ

रोटी दी बच्चों को खून पसीना बहा कर


चलता था वो सड़क पर शान से क्योंकि इज्जतदार इंसान था  

खुशमिज़ाज मददगार, समाज में एक सम्मान था

बस कमी रही जीवन में उसके, गाड़ी बंगला न खरीद सका वो

पैसे के अभाव में नजर आता था थका हुआ सा वो


बेटा तो बेटा रहा पर बहू बेटी न बन सकी 

नई बहू के सपने बड़े थे, हालातों से न ठन सकी 

पति और ससुर को दोष देना बना उसका मिज़ाज था

सास को बुरा भला कहना भी बन गया एक रिवाज था


 बहु की प्रताड़ना से वो बहुत परेशान था 

हो भी क्यों ना आखिरकार इज्जतदार इंसान था


परेशान होकर अंत में अपनी जान पर वो खेल गया 

उसका हृदय जानता है कितना कुछ हो झेल गया 

बेटी जैसी बहू से गालियां खाई उम्र भर 

झूठे मुकदमे में भी बेवजह वह जेल गया


मैंने देखा है रोते हुए पल-पल उसका मरना 

स्वाभिमान से रहने वाले का तिल तिल करके जलना 

घर के किसी कोने में पड़ा रहता था वो 

कोई न देख पाया उसके जख्मों का भरना


कर जीवन लीला समाप्त अलविदा वह कह चला

कितने ही इल्जाम लगे पर आदमी था वो बहुत भला


कितने ही बुजुर्ग बहुओं के दंश से हैं मर रहे

बराबरी की बात करने वाले भी कुछ नहीं कर रहे

इनके दर्द को, क्यों अनदेखा कर दिया जाता है

व्यर्थ आरोपों से क्यों इनका जीवन, दुखों से भर दिया जाता है


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