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Tragedy

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मैंने दहेज  नहीं मांगा

मैंने दहेज  नहीं मांगा

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“मैंने दहेज नहीं मांगा"

साहब, मैं थाने नहीं आऊंगा,

अपने इस घर से कहीं नहीं जाऊंगा,

माना पत्नी से थोड़ा मन-मुटाव था,

सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था,

पर यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज नहीं मांगा”


मानता हूं कानून आज पत्नी के पास है,

महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है।

चाहत मेरी भी बस ये थी कि मां-बाप का सम्मान हो,

उन्हें भी समझे माता-पिता, न कभी उनका अपमान हो।

पर अब क्या फायदा, जब टूट ही गया हर रिश्ते का धागा,

यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं मांगा”


परिवार के साथ रहना इसे पसंन्द नहीं है,

कहती यहां कोई रस, कोई आनन्द नहीं है,

मुझे ले चलो इस घर से दूर, किसी किराये के आशियाने में,

कुछ नहीं रखा मां-बाप पर प्यार बरसाने में,

हां छोड़ दो, छोड़ दो, इस मां-बाप के प्यार को,

नहीं माने तो याद रखोगे मेरी मार को,


फिर शुरू हुआ वाद-विवाद मां-बाप से अलग होने का,

शायद समय आ गया था, चैन और सुकून खोने का,

एक दिन साफ मैंने पत्नी को मना कर दिया,

न रहूंगा मां-बाप के बिना, ये उसके दिमाग में भर दिया।

बस मुझसे लड़कर मोहतरमा मायके जा पहुंची।


2 दिन बाद ही पत्नी के घर से मुझे धमकी आ पहुंची,

मां-बाप से हो जा अलग, नहीं सबक सीखा देंगे,

क्या होता है दहेज कानून, तुझे इसका असर दिखा देगें।

परिणाम जानते हुए भी हर धमकी को गले में टांगा,

यकींन मानिये साहब, “मैंने दहेज़ नहीं मांगा।”


जो कहा था बीवी ने, आखिरकार वो कर दिखाया,

झगड़ा किसी और बात पर था,

पर उसने दहेज का नाटक रचाया।

बस पुलिस थाने से एक दिन मुझे फोन आया,

क्यों बे, पत्नी से दहेज मांगता है, ये कह के मुझे धमकाया।

माता-पिता, भाई-बहिन, जीजा सभी के रिपोर्ट में नाम थे,

घर में सब हैरान, सब परेशान थे,

अब अकेले बैठ कर सोचता हूं, वो क्यों ज़िन्दगी में आई थी.,


मैंने भी तो उसके प्रति हर ज़िम्मेदारी निभाई थी।

आखिरकार तमका मिला हमें दहेज़ लोभी होने का,

कोई फायदा न हुआ मीठे-मीठे सपने संजोने का।

बुलाने पर थाने आया हूं, छुपकर कहीं नहीं भागा,

लेकिन यकींन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं मांगा।”


झूठे दहेज के मुकदमों के कारण,

पुरुष के दर्द से ओतप्रोत एक मार्मिक कृति।




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