रहस्य
रहस्य
इस दुनिया से अनजान
वह चली जा रही थी।
हंसती, अपनी मटमैली
दंत पंक्ति दिखाती
हाथों को इर्द-गिर्द नचाती
राह के कूड़े करकट को बटोरती
जिस्म पर जिसके
सिर्फ एक चिथड़ा शेष था,
उलझी हुई सुतली के समान
भंयकर केश राशि थी।
शरीरांग जगह जगह
घावों से रिस रहे थे।
लोग उसको देखकर हँसते,
अश्लील मजाक करते,
ज्यादा हुआ तो पत्थर मारकर
स्वागत कर देते।
मैंने उसे न जाने कितनी
बार देखा था,
प्रवास के बाद
आज फिर उसे देख रही हूँ -
लेकिन !
आज वह अकेली नहीं है।
एक नवजात शिशु
उसकी छाती से
चिपका हुआ था।
दिमाग पर बहुत जोर डाला
आखिर! इस पगली और बच्चे का
क्या संबंध हो सकता है ?
यह नवजात शिशु ,
किसका हो सकता है ?
किंतु इस रहस्य से
पर्दा नहीं उठ पाया
बुद्धि ने फिर पलटा खाया
और दृष्टि इस नीच
पापी समाज पर डाली
पर्दा उठ चुका था
रहस्य सामने था।
सोचा यह दोष किसका है ?
इस नीच समाज का
या इस पगली की नियति का
बहुत सोचा
पर कुछ समझ न पायी।
बस आँखों में
चंद कतरे लिए
अपने गंतव्य को चल दी।