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Manjul Manzar Lucknowi

Tragedy

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Manjul Manzar Lucknowi

Tragedy

ज़बां बेच डाली क़लम बेच डाले

ज़बां बेच डाली क़लम बेच डाले

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सियासत  ने  दैरो हरम बेच डाले।

महब्बत ने अपने सनम बेच डाले।

अदीबों ने जब सौदेबाज़ी शुरू की,

ज़बां  बेच डाली क़लम बेच डाले।

किसी ने खुशी के लिफ़ाफ़े में रखकर,

हमें ज़िन्दगी भर के ग़म बेच डाले।

वो इंसां ही था जिसने इंसां के हाथों,

मिठाई  के डब्बे में बम बेच डाले।

जिन्हें बाँटनी थीं ज़माने में खुशियाँ,

उन्होंने ही जुल्मो सितम बेच डाले।

हुई  है  फ़रेबों  से  जब आशनाई,

यक़ीं  बेच  डाला भरम बेच डाले।

उन्हें दोस्तों से गरज़ ही नहीं कुछ,

दुआएं  नवाज़िश करम बेच डाले।


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