जागो इंडिया जागो
जागो इंडिया जागो
मुझे शादी नहीं करनी
पर क्यों ?
नहीं करनी बस !
पर क्यों ?
बड़ी दुविधा पूर्ण था उसका जवाब
मैं इतना काम नहीं कर सकती
बड़े लाड से इतरा कर कहा उसने
मुझे अच्छा नहीं लगता ये सब
बस मैं....नहीं ....
कितना सही था उसका जवाब
कितनी स्टीक थी उसकी शंकाएँ
पसंद नहीं था उसे ताना सुनना
किसी बात पर अपमानित होना
लड़की होकर खाना बनाना नहीं आता
नहीं सुनना था उसे ये ताना
नहीं करनी इसलिए शादी
मैंने सुझाव दिया
अगर लड़का कहे
मैं काम कर लूँगा
तब ....बड़ा प्यारा जवाब था
तब ठीक है !
पर.....
पर क्या ?
पर माँ सामने होने पर
न किया तो उसने ?
मैं हँस पड़ी
बड़ा भोला सा प्रश्न था उसका
अनजाने में वह बहुत कुछ कह गई थी
अंदर तक हिल गई
मैं सोच में डूब गई
कितनी छोटी है अभी वह
शादी की उम्र भी नहीं है उसकी
कितनी सही थी उसकी शंका
कितना सच था उसका डर
ये इंडिया है मेरी जान
यहाँ कुछ भी करो,
कुछ भी कहो
बात लड़की की हो
चार बातें हो जाती हैं
लड़के की रीढ़ की हड्डी कैसी भी हो
लड़की सर्व गुण सम्पन्न होनी चाहिए।
कितना सच कहा उसने
जब पढ़ाई, लिखाई, नौकरी
सब लड़के के बराबर
तब ये अन्तर क्यों ?
क्यों केवल लड़की से ही
सारे घर काम की आशा ?
क्या वह किसी भी काम में
लड़के से कम है ?
जागो इंडिया जागो !
जब बेटा बेटी एक समान
तो क्यों जागे भाव असमान !
