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Shikha Pari

Tragedy

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Shikha Pari

Tragedy

बिन बाप की बेटी

बिन बाप की बेटी

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बिन बाप की है,कैसे रहती होगी?

ऐसा कोई सोचता है क्या?

बाप के बिन काम नहीं चल पाता

वो ठहरी रहती है चुपचाप सी


आपस में अठखेलियाँ खेलती हुई लड़कियाँ

वो खामोश सी जा रही बगल से

फादर्स डे पे बड़े बड़े तोहफ़े से लबरेज़ बाजार

वो खड़ी देख रही,आँसू पोछते हुए



अब कन्यादान कौन करेगा?

पड़ोस में आवाज़ें सुनती हुई

खिड़की बन्द करके खुद को समेट लेती है

बिन बाप की बेटी 


लड़के दोस्त नहीं हो सकते

ताना मारने वाले रिश्तेदार

बाप है नहीं तो कुछ भी करो

बिन बाप की बेटी सुनती है


उसकी सीमाएँ बढ़ गई हैं

वो ये नहीं कर सकती

वो नहीं कर सकती

बिन बाप की बेटी की ज़िम्मेदारी बहुत है



माँ को रोते देख उसको चुप कराती है

अपने आँसू खुद ही पी जाती है

बिन बाप की बेटी है


तू अब कहाँ अकेली कुछ कर पायेगी

तेरे पापा होते तो बात अलग थी

वो सुनती है हर बात तीर की तरह चुभती हुई बात

बिन बाप की बेटी


अब शादी के खर्चे का क्या होगा इनके?

सम्मेलन में करदो,मंदिर में निपटा दो

कितना रख गए पैसा इनके पापा

वो खामोश सी दरवाजे के आड़ से 

सुनती रहती है 



वो झरोखे से झाँकती बिन बाप की बेटी

पड़ोसी मुस्कुराते हैं

वो छुपकर देखती है


ये दुनिया की नजरें बहुत खराब है

उनसे बचती है

बिन बाप की बेटी

बार बार सोचती है




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