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Rati Choubey

Tragedy Inspirational

4  

Rati Choubey

Tragedy Inspirational

,फिर भी मैं "पराई"

,फिर भी मैं "पराई"

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युग से युग यूँ बीत गए हैं ----

सदियों से सदियाँ रीत गई है

बहुत ही चर्चे हुए हैं मेरे ----

मैं बदली हूँ ,रूप भी मेरे---


हर रुप निभाया मैंने "बखूबी"

कर्त्तव्य पथ रही अडिग मैं

किया समर्पित सारा जीवन

पर दर्द मेरा बस दर्द रहा


कभी बनी मैं "राम " की सीता

कभी बनी मैं "कर्म" की गीता

कभी " कृष्ण "की राधा दुलारी

कभी बनी" देश" की वीरांगना


नवजीवन बन "पत्नी " रही मैं ‌

वंशवृद्धि की "बेल" रही मैं

कभी बनी " भैय्या " की बहना नेको

कभी बनी "पिता " की बेटी


रूप अनेको लिए रही मैं

सृष्टि " घर " की दृष्टि रही मैं

दादी,चाची,नानी,बुआ रही मैं

अपना प्यार लुटाती रही मैं


हर रूप निभाया अपना मैंने

हुई कभी ना। हताश कभी मैं

"तिनके" से घर। को महल बनाया

पर मुझको घर ने करता बनाया


मैं। ही दुर्गा की "टंकार "

मैं ही काली की " हुंकार"

‌‌मैं ही विध्या की "पुकार"

मैं ही प्रकृति की "झंकार"


मैं ही ज्वाला, मैं ही "बाला "

मैं ही अमृत मैं ही " बाला"

मैं ही शान, मैं ही "आन"

मैं। ही आग ,मैं ही"जान"


मैं ही "पुनीता" मैं ही" विनिता"

‌‌‌‌ मैं ही " रति" मैं ही " सती"

‌‌‌ऋद्धि सिद्धि हूं। "आदिशक्ति" मैं

इस युग की "प्रगति नारी " मैं


फिर भी मैं "पराई" ?

आओ करें संकल्प सभी -----

" सोच " बदले "अहसास" करावे

बदलें जन- जन की प्रवृत्ति ----

मैं ना "पराई" थी

ना हूं " पराई"

ना "पराई" रहूंगी---

मैं सदा "तुम्हारी"

मुझसे ही " तुम"

मुझसे "घर"

मुझसे ही "संसार" है---



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