जिंदगी खेल नहीं----
जिंदगी खेल नहीं----
" ऐ" ज़िंदगी रुक जा ज़रा
ना "शिकवा" ना "शिकायत"
" ऐ" ज़िंदगी तुझसे
सुन----
जब पास थी "मेरे"
तेरी "कद्र" ना की मैनें
बेखुदी में चलती रह " मै"
अब ---
जब हर पल
"तू" दूर होती जा रही
तो "कद्र" तेरी जान पाई
अब समझी --
"ज़िंदगी " एक "रंगमंच" है
हम सब तो "कलाकार"
जैसा वो नचाये नाचे
कोई कहे ज़िंदगी "खेल"
कोई कहे यह "उपहार"
कोई कहे यह "यात्रा"
कोई कहे बस " दौड़"
हम तो "कठपुतली" हैं----
जैसा नचाने "ज़िंदगी "
"ज़िंदगी " अपरिभाषित"
विभिन्न पहलुओं पे टिकी
विचारों का खेल " ज़िंदगी "
जो समझे वहीं है "ज्ञानी"
मुझे---+
एक "बौखलाहट" सी
हर समय ही रहती
दौड़ कर थाम लूं "ज़िंदगी "
पर वो तो जा रही भागती
। सुनो तुम भी ---
ईश्वर की देन ""ज़िंदगी "
। सकारात्मक, नकारात्मक
दो सोच है -----जीने के
कैसे जीना तुम्हैं "ज़िंदगी "
सुकून की बिताओ "ज़िंदगी "
"दूभर" ना करो किसी की "ज़िंदगी "
एक दर्दीली छुवन से किसी की
बर्बाद ना करो कभी"ज़िंदगी "
लूटपाट, मौतें,स्वार्थता
भ्रष्टाचार, लोलुपता,असत्य
"मज़हबो" के दायरों में बंट
"हवसता" में ना समेटो "ज़िंदगी "
अपनी "पहिचान" बनाओं
मत करो "विध्वंश" का ताण्डव
"प्रेमरिक्त " व्यक्तित्व" ना करो
"मानवता" से सींचो "ज़िंदगी "
थको तो तुम "सुस्ता" लो
पर "हमसफर" है "ज़िंदगी "
"संत्यमेव जयते" का करो घोष
"शंखनाद" से मधुसिक्त करो "ज़िंदगी "
दुबारा ना मिलेगी "ज़िंदगी "
ईश्वरीय प्रसाद "ज़िंदगी "
गति सुधारों ,मति सुधारों
एक बार मिलती "ज़िंदगी "