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Rati Choubey

Abstract

3  

Rati Choubey

Abstract

श्राद्ध----+

श्राद्ध----+

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इन "श्राद्धों" में

याद तुम्हारी आई

मन की पीर

उमड़ फिर आई

अंखियां मेरी भर भर आई


‌‌‌‌ शायद इन "श्राद्धदिवसों" में

आजाओं तुम श्रृद्धा के वश में

पर नहीं

समय बदला , इंसा बदले

विचार बदलें, सोच बदली


आधुनिकता की दौड़ में

"श्राद्धपक्ष" के बदले "मायने"


त्यौंहार समान मनावें "श्राद्ध"

भावनाएं खत्म, उछलता पैसा

समय कम " आनलाइन" श्राद्ध

औपचारिकता रही, दिखावा ही


नई पीढ़ी चिल्ला रही

शर्म नहीं आती "मुत्यु भोज" खाने में

घर रोता,बच्चे बिलखते, वे भूखे घर में

कण कण है आंसू से गीले पकवान

उस "पकवान" को चख चख खाएं ?


खत्म क्यों अब "रूढ़ि वादियां"

हकीकतों से कर अब "समझौता"

"श्राद्ध" करो परिजनों का नियम से

जितनी भक्ति ,शक्ति , श्रद्धा मन में


धर्मशास्त्रानुसार

देव ऋण, ऋषिऋण, समाज ऋण है

"पितृऋण" है सभी ऋणों से ऊपर

जो औलाद उतारे इन ऋणों को

कर्जमुक्त हो सुखी रहे जीवनभर


"पितृऋण" जो चुकावे मुत्यु उपरांत

जीवन उसका सदा ही सुखमय हो

श्रद्धा प्रेम। से करता वो जब "श्राद्ध"

लेकर "पितरों" का आर्शीवाद


पितर नहीं कहते

‌‌‌‌‌शोर शराबा कर ,करो दिखावा

करो लाखों खर्च ,श्राद्ध दिवस पे

"ढोंगी" पंडित करते हैं ये "ढोंग"

‌‌‌ हम तो हैं श्रद्धा वंश में पितर तुम्हारे


"अध्यात्मशास्त्र " से जुड़ी ये क्रियायें

मातृ पितृ पूजन का महत्व सदा ही

श्राद्ध करो ,आडम्बर नहीं, फरेब नहीं

"धर्म पालन " करो अपना कर्त्तव्य मान

यही सुगम मार्ग है ऋण चुकाने का

‌‌‌‌। अब

" वे" केवल आभासित ,पर अतुलनीय

अस्तित्व नहीं है ,परछाई नहीं अब

जीते जी कर लो सेवा। मात पिता की

सार्मथानुसार करो श्राद्ध पितृ प्रसन्न।


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