STORYMIRROR

Rati Choubey

Tragedy

4  

Rati Choubey

Tragedy

बस कुछ कह कर जाते

बस कुछ कह कर जाते

1 min
218

द्वार पर मेरी नजर गड़ी है 

कब आ जाओ पता नहीं

नयन तटों से उमड़ा सागर

 आंसू बनकर मुल्क रहा है।

   जीवन -पुस्तक के किरदार थे तुम 

  बिखर गए पुस्तक के वे पन्ने पन्ने

   कैसे -? उन्हें ‌‌ समेटूँ "प्रियतम"

    छटपटाहट सी रहती हर पल -

धरा एक है। आकाश एक 

 हम तुम बंटे क्यों टुकड़ों में 

 दर्द एक था, प्रीत एक थी 

फिर तुम क्यूं तुम यूं गए। अकेले ?

    जीवन चहक रहा था तुमसे 

    रही सुवासित सदा मैं तुमसे 

    मधुसिक्त रही हर पल मैं तुमसे 

    मुझसे ही हों गए विमुख "तुम"

तुम "बरगद" से बलिष्ठ "तना" थे 

उर्जित रही सदा ही तुमसे 

मेरे जीवन के "सूत्रधार " थे 

गठबंधन तुम तोड़कर भागे 

   देकर "उम्रकैद " तुम मुझको 

    जीवन को कर यूं "सीलबंद"

    ओ मेरे निष्ठुर " न्यायधीश"

     चले गए  किस " लोक " में तुम

"बिंदिया" में था "प्रतिबिंब" तेरा 

 सदा रही इस  भाल पे मेरे 

 "बिछिया" ही "संबल" थे मेरे 

  चलते रहे दृढ़ कदम ही मेरे 

    ढूंढूं तो कैसे --? हुए कहां "लापता"

    कुछ तो दे जाते "सुराग" प्रिय -

     कहां करूँ "अपील" बता दो तुम

    "अपहरण कर्ता " से छीन तुम्हें लाती 

            बस----- 

एक शिकायत सदा रहेगी 

मुझसे "तुम" कहकर तो जाते दिनेश--???



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy