तुम आहुति बन उतरे -
तुम आहुति बन उतरे -
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प्रेम यज्ञ की ज्वाला में
तुम आहुति बन उतरे
रही सुवासित पीड़ा मेरी
अंग-अंग हुआ आनंदित
रोम रोम में बसा गया "तू"
आहुति सा "तू"
ज्वाला तो भड़की प्रिय
फिर -----
जब जब उतरे "तुम"
" आहुति " बन
प्रेम यज्ञ की ज्वाला में तुम
लिपट गई "आहुतियां "
भी --
मेरे अंग -प्रत्यंगो से
धीरे-धीरे
शांत हो गई जब
बढ़ती हुई वे ज्वालाएं
बच गई "बस"
प्रेम -यज्ञ के कुंड में
पड़ी हुई थी -
मेरी-तेरी
भस्मदेह
भावविभोर निर्लिप्त सी
हो
एकरस।