Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Rati Choubey

Abstract

3  

Rati Choubey

Abstract

क्योंकि लड़के रोते नहीं --+++

क्योंकि लड़के रोते नहीं --+++

2 mins
843


कौन कहता लड़के रोते नहीं ?

क्या उनके ह्रदय नहीं या भाव नहीं ?

क्या वे इंसा नहीं अजूबा है ?

वे भी रोते हैं पर प्रत्यक्ष नहीं

क्योंकि वो पुरूष हैं


मैं पुरूष हूं

‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌वज्र सा कठोर तो क्या हुआ ?

मेरे पुरूषत्व को ना पहुंचे चोट

नाहि हो मेरी जग हंसाई कहीं

आंसू को मान हलाहल पी जाता

बन जाता मैं समाधिस्थ हो शंकर

क्योंकि मैं पुरुष हूं


जज्बातों को छुपा बन जाता ह्दयहीन

मैं जितना। कोमल उतना ही कठोर

हिचकिचाता हूं दर्द। बंया करने में मैं

दर्द। को। अमृत समझ कर पी जाता मैं

बन जाता हूं तब शक्तिमान मैं


भर आई थी अंखियां राम की

जब हुए विलग प्राणप्रिया सीता से वे

कितने बरस रोये छुप छुप कर वे

पुरूषोत्तम थे पर थे तो मानव वे

क्या वे पुरूष नहीं ?


जब जाते। युद्ध मैं सैनिक

जूझकर वहां याद दिलाते बैरी को हस्ती

पर जब क्षण भर याद करें अपनोंको‌

बरस। ही जाती अंखियां सैनिक की

‌‌‌‌‌पोछ आंसुओ को फिर भिड़ जाते हैं

क्या वे पुरूष नहीं ?


दिल का टुकड़ा बिटिया की बिदाई

लिपट जाती जब अपने पिता से वो

नैनाश्रु बहते पिता के तब अनजाने

रोक नहीं पाता वो अपनी वेदना

क्या। वो पुरूष नहीं ?


शब्दबाणों से होता जब घायल वो

मन रोता स्वाभिमान बिलखता तब

कर ना पावे कुछ आहत भी हो वो

मजबूरी में जब पीता। आंसू ही वो

कार्यक्षेत्र में अपमानित हो वो

क्या वो पुरूष नहीं?


जब खो देता अपना पर्याय वो

किसी बेवफा के धोखा देने पे

असहाय सा रह जाता हताश वो

स्वाभिमान ही लेता। रोक उसे

अंखियों के आंसू रोक ना पाये वो

क्या वो पुरूष नहीं ?


ग्रस्त बीमारी से अपने को वो

‌‌‌ जब‌ देखे परिवार अविकसित वो

सोचे। मैं। ही तो आधारशिला हूं

मैं ही संबल दाता कर्ता पतवार

फूट पड़ता सैलाब आंसूओ का

‌। क्या वो पुरूष नहीं?


दिगदिगंत विजेता था वो

लंकापति प्रकाण्ड विद्धान रावण

जब उठा ना पाया धनुष को

‌‌‌ ‌‌अपमानित हुआ जानकी सन्मुख

बह निकले अपमान के आंसू

क्या वो पुरूष नहीं ?


क्योंकि

पुरूष समझे कर्ता अपने को

पुरुष समझे रचियता अपने को

‌ लेकर चले‌ विश्वास परिवार का

कैसे तोड़ वो सबका विश्वास

बहा दे आंखों से आंसू

रोकर करे कमजोर

क्योंकि वो आखिर पुरूष हैं ?


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract