द्वार लगे हैं नयना मेरे
द्वार लगे हैं नयना मेरे
द्वार लगे हैं नयना मेरे,
राह निहारें घड़ी-घड़ी।
कब आएंगे साजन मेरे,
लगी हुई सावन की झड़ी।
कुर्ते के काले रंग सी ही,
घोर उदासी छायी है।
चुनरी के रंगों ने फिर से,
उम्मीदें जगायी हैं।
तूलिका में रंग लिए मैं,
कोरे घट को सजा रही।
और उमड़ते भावों को मैं,
मन के भीतर दबा रही।
था इसी घड़े से सोहनी ने,
दरिया चिनाब का पार किया।
इसी घड़े ने सोहनी को,
था महिवाल से मिला दिया।
लैला-मजनूँ, हीर ओ राँझा,
बिन फेरे ज्यों एक हुए।
सच्चे आशिकों को सदा मिलाने
प्रकृति ने भी खेल किये।