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Juhi Grover

Tragedy Crime

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Juhi Grover

Tragedy Crime

गंगा की पवित्रता, तवायफ़ की पाकीज़गी

गंगा की पवित्रता, तवायफ़ की पाकीज़गी

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सुना है गंगा मैया बरसों से हमारे पाप धोती आई है, 

और बरसों से ही धीरे-धीरे मलिनता यों ढोती आई है। 

स्वार्थ के चर्म पर पहुँचा मानव पापी बन तो जाता है, 

क्या उनकी नम्रता से मानव जाति नम्र होती आई है। 

सुना है गंगा मैया के घाट पे सुकून की प्राप्ति होती है, 

तो क्या मनुष्यता स्वार्थवश हो पाप ही बोती आई है ? 


एक स्त्री ने माँ, बेटी, बहु, पत्नी के किरदार निभाए हैं, 

पात्र हर उसका झूठा, वो तो मात्र स्त्री ही होती आई है। 

ईमानदारी से अपने फर्ज़ निभाना अब सज़ा हो गया, 

अपने ही लिए वो खुद अपनी ही कज़ा होती आई है। 

सुना है जो फ़सलें बोई जाती हैं, वहीं काटी जाती है, 

तो क्या हमेशा वो फूल की अपेक्षा काँटे बोती आई है ? 


एक तवायफ़ बरसों से पुरुषों की दासी बन खड़ी है, 

बस निर्जीव वस्तु की भाँति आँसु छिपाए रोती आई है। 

पवित्र पुरुषों के बाज़ार में आते ही वो मलिन हो गई, 

क्या पुरुष जाति उसी कालिख से संस्कार खोती आई है। 

सुना है तवायफ़ परिवार बना कर रहने के क़ाबिल नहीं, 

तो क्या जिसे धोखा मिला, वही बदनाम होती आई है। 


गंगा मैया या फिर तवायफ़ स्त्री पाक़ कहाँ रह पाई है, 

अपनी ही क़ालिख धो जहाँ मानवता तृप्त होती आई है। 

अपने ही शारीरिक दोष किसी और को सौंप इन्सानियत, 

क्या मन की कलुषता को अपने ही कंधों पे ढोती आई है ? 

लौटा पाओगे गंगा की पवित्रता, तवायफ़ की पाकीज़गी,

या सहनी पड़ेगी वही ज़िल्लत जो बरसों से ढोती आई है ?


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