अरमान
अरमान
ढेर सारे अरमान उस दिन मैने फिर से सजाए थे,
जिस दिन हम उन्हें मिल कर घर को आए थे।
बहुत ही खुशी थी - बहुत ही महक थी,
जिस तरह से हम उन्हें महका के आए थे।
बयाँ ना की जाए हया उस वक़्त की,
कैसे बताए की... खाली हाथ लेकर -
फिर से लौटकर घर को हम आए थे।
सोचा "ख़ुशी मिली थोड़ी सी" फिर भी,
थोड़ी सी खुशी में हम अपना जहाँ
सजा के जो आए थे।
अरमान हमारे थे बहुत से,
वो ही अरमानों को दोहराने आए थे।
भूल कर सारे गीले और शिक़वे
फिर से वो ही अरमान सजाने को हम आए थे।
....ढेर सारे अरमान सजाने को आए थे।

