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Sanket Vyas Sk

Abstract

5.0  

Sanket Vyas Sk

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हाँ मैं वही एक नदी हूं

हाँ मैं वही एक नदी हूं

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मैं यूँ ही बहती रहती हूं 

मैं कभी ठहरती नहीं 

कभी कभी में कही जल्दी से गिरती 

कहीं मैं शांत रहती हूं

हाँ मैं वही एक नदी हूं


जहाँ से में निकलती

सीधा समंदर को ही मिलती हूं

हां बीच मे मिलता पथ्थर कभी तो

उसे तोड़कर वहाँ से बहती हूं

हाँ मैं वही एक नदी हूं


कभी कभी में रूप भी बदलती

कहीं कहीं पर बदलती में नाम

कहीं पर झरने का रुप लेती

कहीं "गंगा" बन जाता मेरा नाम

हाँ मैं वही एक नदी हूं

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कई सारे जीवो की तरस छीपाती 

कई खेतो की फसल हरी रखवाती

बारिश मै कभी रौद्र बन जाती 

और बहुत तबाही भी मचाती

 हाँ मैं वही एक नदी हूं


वैसे तो कई सारे नाम है मेरे

साथ में सैंकड़ों धाम है मेरे

खेत में हरियाली लाना

और लोगों की तरस छीपाना

यही सब काम है मेरे

 हाँ मैं वही एक नदी हूं


बस यूँ ही बहना और

सभी के काम में आना 

यही बस काम है मेरे

 हाँ मैं वही एक नदी हूं।


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