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Bhavna Thaker

Tragedy

4  

Bhavna Thaker

Tragedy

अपनों के हाथों मात मिली

अपनों के हाथों मात मिली

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रेल सी लंबी ज़िंदगी में ना खुशियों की रात मिली,

आँचल तो आसमान सा था चुटकी भर सौगात मिली।


हौसलों की कोशिश देखो हारने की फ़ितरत तो नहीं, 

अपनों की इस नगरी में उफ्फ़ अपनों के हाथों मात मिली।


पीठ पीछे वार करते अपनों की ज़हरिली हंसी सुनी,

आरज़ू क्या करें बहारों की पतझड़ की बरसात मिली।


लब तक आते पैमाने हरदम ही क्यूँ छलक गए,

मैखाने की चौखट से दिल दहलाने वाली बात मिली।


रेत सी फ़िसली ज़िंदगानी छूते ही मेरे बिखर गई,

जब भी चंद पल खुशियाँ पाई गम की बदली साथ मिली।


छलनी पड़ी है रूह रोम रोम किसको फ़रियाद करूँ,

छूने गई मैं हल्की हंसी जो सितम की शुरुआत मिली।


मौत के हाथों बिक चुकी मेरी उम्र की अठखेलियां,

जीने की क्या चाह करूँ रीढ़ पर वक्त की लात मिली। 


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