अन्तर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस
अन्तर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस
अन्तर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस, दे जाता है जन घाव,
कैसे जीवन बीतेगा, कैसे उतरेगी जग में नाव।
पुरुष पुरुष को मारता, तकता रहता नित दाव,
गली चौराहे पर करता रहता, देखो कांव कांव।।
झूठ का सहारा नहीं लिया, हरिश्चंद्र कहलाये,
हर बात पर खरा उतरा, कितने ही कष्ट उठाये।
परीक्षा देते रहे हर कदम, कभी नहीं घबराये,
ऐसे सच्चे पुरुष सदा, हर दिल में बस जाये।।
देखो जरा सज्जन पुरुष, हर जन का चाहे भला,
निशाचर जन को देखिये, काटता सरेआम गला।
फकीर कोई अगर मिल जाये,झोपड़ा देता जला,
मिलता उतना ही सुख,जो जितना दुख में चला।
चहुं ओर खुशहाली थी, हर घर में दीवाली थी,
स्त्री पुरुष नित हँसते जाये, रातें काली काली थी।
शिक्षा का प्रचार चहुं ओर, विदेशों तक था नाम,
धर्म कर्म में लीन सभी हो, दूध भरी थाली थी।।
कितने पापी पार उतारे, कितने ही सहारे हैं,
नारी, पुरुष, बाल, देवी देवता को तुम प्यारे हैं।
त्रि-नेत्रधारी कहलाते, महिमा बड़ी भारी है,
तेरी सूरत पूरे जग में, अजब अनोखी न्यारी है।।