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अंतिम यात्रा

अंतिम यात्रा

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कभी बैठकर शमशान में,

खुद को किया है महसूस,

जीवन की अंतिम यात्रा में,

शव के साथ चलना और,

देह के राख होने तक !


बैठकर दग्ध होती चिता में,

सारे आतंरिक द्वंद की आहुति देना,

कितना मिश्रित भाव जीते हैं हम,

चिता की आग हरेक अश्क को,

कर लेती है स्वयं में आत्मसात !


अग्नि में समाहित होते आपके प्रिय,

आपके लिए छोड़ जाते हैं बस कुछ यादें,

और...

गंगा की धारा लेकर चली जाती है,

चिता के भस्म की तरह आपके दु:ख !


मोह, प्रेम, क्रोध आदि सब भावों को,

और कुछ ही क्षणों में अदृश्य हो जाता है,

वो शख्स, जिसे जाने नहीं देना चाहते हैं,

आप स्वयं से दूर कभी !


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