#अंताक्षरी शायरी की #
#अंताक्षरी शायरी की #
अर्ज किया है...
" सारी रात जज्ब किया है हमने इंतज़ार को,
सुबह की ओस बेगैरत भटका हुआ आंसू है।"
कहो के अब तुम्हारी बारी ...
अच्छा तो....सुनो यारी हमारी
"है आहिस्ता धड़कन कि अब कोई पूकार ले,
क्या धरा जिस्म में चल रूह से सौदा कर ले।"
कुछ ठीक सा है...चलिए इसे संभालें
"लो कमबख्त अदावत भी मोहब्बत लगती है,
संभल दिल की ये जहर भी चाशनी लगती है।"
इसका जवाब नहीं होगा...
"हुआ है गुमां बादलों को ,सब्र रखने का,
नादां ये निगाहें सागर सी नमी रखती है।"
ये भी गुमनाम सी
एक महफ़िल है शायरी की
ये जो दिल ही दिल मे
ख़ामोशी से हम खेला करते हैं
हर रात
तुम्हे ख़्वाबों में
लेकर।