अंखियां
अंखियां
पुरुष करता है तारीफ
औरत की उसकी आंखों की
कभी मृगनयनी कभी मीनाक्षी कह कर
कभी नैन कटोरे कटार चलाते हैं उसके दिल पर
कभी काजल डाले हुए नैनों से घायल होता है वो
क्या कभी आंखों को पढ़ता है वो
क्या आंखें देख कर ही औरत का मन पढ़ लेता है वो
क्या पुरुष का पौरुष स्त्री के आंखों में छिपे दर्द को पहचान पाता है ?
क्या कभी उसकी आंखों के सहारे अंतर्मन में झांक पाता है ?
जो अगर पढ़ लेता है वो उसकी खाली आंखों को
वो फिर पा लेता है मोहब्बत, खालिस मोहब्बत।
