तुम बिन
तुम बिन
मैं तुझ में कहीं ठहर गया हूं
ये चाय का मिट्टी का कप
ये जलता हुआ अलाव
और पीछे कानों में गूंजते
कुछ किशोर रफी के गाने
बहुत कुछ याद आता है
तेरा मेरे शाने पे सर रखना
वो तेरा चपर चपर बोलना
जाने कहां कहां के किस्से सुना ना
एक ही शॉल को लपेट कर बैठना
ये पीछे का आंगन और तेरे ये पौधे
सब कुछ तुझे बुलाता है मेरे मीत
यादें कसक जगाती हैं गाती हैं तेरे ही गीत
सात समंदर पार जो तू जा बैठी है
लौट आ ये मेरा मन सब तुझ बिन खाली है
वतन में भी रोटी है मोहब्बत है
चली आ मेरी जान मुझ में रवानी ले आ
देख कैसे अधूरा हूं तुझ बिन
सब कुछ निपट सुन्न है तेरे बिन
लौट आ मेरे ठहरे हुए जीवन में
जीवन तरंगिणी बन , गंगा की लहरों सी
आ तू मुझ सागर में समा
खुद पूर्ण हो मुझे पूरा कर जा।
