अंगारे
अंगारे
बरसों से दबे थे, अंगारे राख के ढेर में,
बस जरा कुरेदा तो हाथ जल गए,
हम ये सोच के बैठे थे कि धूल है, राख है ये,
बस जरा सा कुरेदा तो हाथ जल गए,
क्यूँ मन ने कहा कि कुरेद दूँ इसे कि भभक उठे,
फिर लगा दबे रहने दो राख के नीचे अंगारों को,
कुछ सर्द पलो में गरमाहट देंगे।