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Shailaja Pathak

Abstract

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Shailaja Pathak

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मेरा चांद

मेरा चांद

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मेरा चांद जो मेरी छत पे रहता है,

बातें करता है , बुलाता है मुुुुझे,

वो मेरा है मेरे घर पे उगता अस्त होता हैै,

पर, कभी जब कही और जाती हूं

और पूछती हूं कि क्या तूू वही मेरा वाला चांद है?

कहां  का है तू?

उसने कहा कि मैं तेरा हूं,

तू जहां जाए वहां का हूँ मैं,

मै हंसी , और जब वहां सेे लौटी ,

तो उसे भी बांध के लेे आई 

समान के साथ,वापस अपने घर।


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