अंडमान निकोबार द्वीप समूह..
अंडमान निकोबार द्वीप समूह..
भारत को जानें
प्राकृतिक सौंदर्य
01.पशु
घिरा नीर से क्षेत्र है, वृक्ष बिहड़ परिपूर्ण ।
पशुऍं मनहर दृश्य से, देते सुख आघूर्ण ।।
सहचर गामी नियम नियंता ।
प्रेम भावना साथ चलंता ।।
अंडमान की बात निराली ।
मानव सह पशु करें जुगाली ।।(1)
पशु निर्मम हत्या रुके तभी ।
पूजी जाए जब गाय कभी ।।
राजकीय पशु जो यहॉं रही ।
डुन्गोंग समुद्री गाय वही ।।(2)
अंडमान का जंगल ऐसा ।
पशु का प्रश्रय दाता जैसा ।।
विविध जीव जल जीवित पोषित ।
कछुए अंदर कोरल रक्षित । (3)
पशु से मानव मानव बनते ।
वही आज क्यों दानव बनते ।।
साथ-साथ जो चीर काल से ।
मरते वो हैं मोह जाल से ।। (4)
मगर केकड़ा कानन सूकर ।
मंद-मंद मुस्काते पुष्कर ।।
व्हेल यहॉं के दॉंतेदारी ।
रक्षित चलो करें तैयारी ।।(5)
02.पक्षी
मानस नभ में घूमता, देत पंख विस्तार ।
तितली बनकर यह उड़े, फूल-फूल के पार ।।
जब-जब सूरज ढलता जाए ।
आइलैंड कुछ कहता जाए ।।
चिड़िया टापू कलरव करता ।
ढूंढ -ढूंढ स्वर मधुरिम भरता ।। (6)
शोभित सम जैविक उद्यानी ।
थल से नभ खग गगन उड़ानी ।।
प्रजातियॉं हैं कई यहॉं से ।
कुछ उड़ आते यहॉं-वहॉं से ।।(7)
तितली सबसे बड़ी सयानी ।
बहुतायत की यहीं निशानी ।।
फूल-फूल में मॅंडराती है ।
तितली रानी कहलाती है ।। (8)
राग कबूतर गाते दुर्लभ ।
हर्षित दोनों लक्ष्मी वल्लभ ।।
कोयल मीठी गीत सुनाए ।
उर अंतर में प्रेम समाए ।।(9)
भोर उठो रे ईश शरण से ।
सूर्योदय की प्रथम किरण से।।
चुन-चुन कर खग दाना लाते ।
मिलकर रहना साथ बताते ।।(10)
03.पुष्प
धरा वहीं सुरभित हुई, महके जब हैं फूल ।
कोई फूले फूल तो , कोई तुलसी कूल ।।
पुष्पित वादी अंडमान की ।
श्रृंग पहाड़ी कुसुम शान की ।।
सभी द्वीप का आच्छादन है ।
फूल से अनुपम उत्पादन है ।।(11)
अंडमान पयिनमा फूल है ।
राजकीयता पुष्प मूल है ।।
सुहावनी सी सुंदरता को ।
मिले प्रकृति की उदारता को ।।(12)
बीस शतक ये फूल पौध हैं ।
दो सौ पंद्रह विषय शोध हैं ।।
पुष्पित दौलत करती भूषित ।
पर्यावरणी रोके दूषित ।। (13)
आर्किड पौधे रंग-रंग के ।
खुशबू त्यागे अंग-अंग के ।।
चंद्रशूर की खेती देखो ।
औषध सम गुणकारी लेखो ।। (14)
फूल एरिया अंडमानिका ।
आर्किड डेंसिफ्लोरमी गुणिका ।।
अंडमानिका ओलर मैले ।
दूर-दूर सतरंगी फैले ।। (15)
आकर्ष कारी पुष्प खिले हैं ।
मानो मन से प्रेम मिले हैं ।।
मुग्धित तन आज हिले हैं ।
ऐसे हर्षित तीन जिले हैं ।। (16)
04.वृक्ष
मानवता को नोचकर, प्रश्न करे हैं कौन ।
वृक्ष यहॉं हॅंसता खड़ा, देख रहा है मौन।।
वृक्ष यहॉं के बहु गुणकारी।
आयुर्वेदी औषध धारी ।।
द्वीप यहॉं बेजोड़ बहारी ।
ऊष्ण बन्ध के तरु उपकारी ।।(17)
बॉंस मिले हैं बेंत मिले हैं ।
टीक चुई संकेत मिले हैं ।।
लायक खेती खेत मिले हैं ।।
चमचम चमके रेत मिले हैं ।।(18)
मार्बल लकड़ी कोको लकड़ी ।
बर्र राल के लकड़ी तगड़ी ।।
वृक्ष धरे रुद्राक्ष धूप हैं ।
धारे पावन कई रूप हैं ।। (19)
वृक्षम पूजत जन जाति यहॉं ।
ओंजे शेटनली और कहॉं ।।
रहते हैं यहॉं अंडमानी ।
रक्षा करते भारत धानी ।।(20)
जिनके मन में दृढ़ निश्चय हो ।
जाति जारवा का संचय हो ।।
करते जो हैं वृक्ष निवासी ।
जीवन यापन सम सन्यासी ।।(21)
05.पर्यटन स्थल
बीस-बीस के नोट में, दिखता जंगल एक ।
भ्रमण योग्य है यह धरा, आते लोग-अनेक ।।
संस्कृति के जो विविध रूप हैं ।
"छोटा भारत" वही धूप हैं ।।
रहजन आते दूर देश से ।
भाषा भूषा अलग वेश से ।। (22)
क्रिसमस नूतन साल मनाने ।
जन-जन आते द्वीप सजाने ।।
श्वेत रेत पद छाप छोड़िए ।
हैवलॉक के द्वीप आइए ।। (23)
नजर जहॉं तक नील नीर हैं ।
वृक्ष धरे जो समुद्र पीर हैं ।
दिखते पानी अमी क्षीर हैं ।
वो ही राधानगर तीर हैं ।। (24)
सक्रिय ज्वालामुखी यहॉं का ।
बैरन नामी द्वीप वहॉं का ।।
फोटोग्राफी शौक रखे जो ।
विजयनगर का बीच चखे वो ।। (25)
सौंदर्य रुपी अनुपम दर्शन ।
कूट-कूट है प्राकृत मर्दन ।।
घूर रहे क्यों बैठे-बैठे ।
बीच भरतपुर पीछे पैठे ।। (26)
चूना पत्थर गह्वर द्वीपा ।
मानो तन में दुधिया लीपा ।।
बारातंग द्वीप को आओ ।
अतुल दृश्य को हिय में पाओ ।। (27)
काला पानी सजा यातना ।
पावन कर लो वही चेतना ।।
कैसे सहे वीर सेनानी ।
सेलुलरी की सुनो जुबानी ।।(28)
06.झीलें
उर में जल को धारते, झील धरा नमनीय ।
जल का संचय यह करे, पुत्र धरे आत्मीय ।।
वृहद गर्त यह धरातली है ।
तट से झील वहीं मचली है ।।
धारे उर में जल मीन सभी ।
झील सदा हों पर लीन सभी ।। (29)
झील वही हैं परहित कारी ।
सबको देते जीवन न्यारी ।।
सर्वस्व करते जो न्योछावर ।
नमन उन्हें नित कर यायावर ।। (30)
07.नदियॉं
कल-कल बहती धार है, बहना जिसका भाव ।
पाहन रोके राह को, देता केवल घाव ।।
एकल केवल "कल्पोंग" नदी ।
उर को अंतस उत्तोंग नदी ।।
अंडमान में बहती जाती ।
प्रेम सुधा भी घुलती जाती ।। (31)
सैडल पर्वत से निकल रही ।
तजती व्यथित सह विकल रही ।।
पावन करती मरु भूम धरा ।
मानो माता उर दुग्ध भरा ।। (32)
एरियली वह खाड़ी आती।
कल्पोंग नदी मिलती जाती ।।
रग-रग में प्रेम बहाती ।
अंतस बहुता सदा सुहाती ।। (33)