भंगिमा
भंगिमा
क्यों मैं मौन स्तब्ध निरंतर रह -रह कर अपनी
व्यथा के परिधियों में आवाध भ्रमण करता हूँ ?
शांत निशब्द प्रतिक्रिया रहित मुक दर्शक
किंकर्तव्यविमूढ़अकर्मण्यता के लिबासों में लिपटा रहता हूँ ?
मैं भी हूँ गाण्डीवधारी धनुर्धर प्रशिक्षित प्रहार करके
लक्ष्य भेदना मैं कुशलता से जानता हूँ !
किस समय, किस पहर, किस स्थान पर
गरम लोहे पर प्रहार करना जानता हूँ !
मैं नहीं सिर्फ तस्वीरों के फ्रेमों में चिपक कर
सारी गतिविधिओं को देखकर जमाहियाँ लेता हूँ !
छुप के नहीं दुबक के नहीं आक्रांताओं के प्रतिकारों को
अपनी क्षमता से मुंहतोड़ जवाब देता हूँ !
