विकलांगता अभिशाप नहीं
विकलांगता अभिशाप नहीं


पीड़ा ऐसी देखकर,
मन दुखी हो जायें।
विकलांगता के अभिशाप को,
सहा अब ना जाये।
शब्दों के खेल है निराले,
विकलांगजन को दिव्यांग पुकारे।
अंग भंग के दंश झेल रहे,
कैसे रहें केवल शब्दो के सहारे
अपंगता की चुनौती स्वीकार कर ली,
जीने की हुंकार भर ली।
असहाय ना समझो उनको,
उड़ान नभ तल में भर ली।।
दिव्यता के वाहक है जो,
लंबी दौड़ के धावक है वो।
उनके जज्बे को नमन है,
सौ के बदले एक है वो।