वास्तविकता
वास्तविकता


कब जलता है बिन हवाओं के दिया
हवायें चाहे लाख बुझाए उसे
कब जीता है बिन रिश्तों के आदमी
रिश्तें चाहे लाख आजमाये उसे
कब जरूरी है बिन अँधेरों के रोशनी
अंधेरा चाहे लाख दबाए उसे
कब हुई है पावन बिन आँसूओं के आँखें
आँसू चाहे लाख रुलाये उसे
कब हुआ है कुन्दन बिन आग के सोना
आग चाहे लाख तपाए उसे
कब बना है मशहूर बिन ठोकरों के इंसा
ठोकरें चाहे लाख गिराये उसे
कब चखा है किसी ने बिन ग़म के खुशी
ग़म चाहे लाख सताए उसे
कब मुकम्मल है बिन मौत के जिंदगी
मौत चाहे लाख डराये उसे।