इंतज़ार
इंतज़ार
वह बाट जोहती है,
वह बाट जोहती है,
सम्मान के अधिकार की,
प्रेम की, स्वाभिमान की,
वह बाट जोहती हैं,
तुझ में पुरुषत्व के विकास की,
जो हर नारी का रक्षक हो,
जो हर दुर्योधन का भक्षक हो,
वह बाट जोहती है,
जीवन के अधिकार की,
जहाँ न भूर्ण में ही उसकी हत्या हो,
बाहुबली बन हर जन उसका रक्षक हो,
वह बाट जोहती हैं,
उस समय की,
जहाँ उसे हर अधिकार हो,
उसके त्याग, समर्पण का सम्मान हो,
वह बाट जोहती है,
उतने ही प्रेम की, समर्पण की,
जो वह बिना शर्त तुझे देती है,
प्रेम से हर जीवन सींचती है,
वह बाट जोहती हैं
तुझमें भी वाणी संयम की,
जहाँ न हर शब्द पर उसका अपमान हो,
जीवन के हर पल पर उसका भी सम्मान हो,
वह बाट जोहती है,
हे नर तुझमें मनुष्यत्व के विकास की,
एक प्यारे से समाज की,
जहां न भय न आतंक हो,
सुरक्षित जहाँ वह हर पल हो,
क्या समाप्त होगा अब वह इंतजार,
क्या पूरी होगी हर नारी की चाह,
तभी तो वह बाट जोहती हैं,
एक संपूर्ण बदलाव की,
प्रेम की ,सद्भाव की।।