फ़र्ज़
फ़र्ज़
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बिंधी तुम्हारी देह हो
लथपथ जिगर के खून से
धरा का रंग लाल हो
प्रहार पर रुके नहीं
सर कभी झुके नहीं
सीमा पर जब शत्रु हो
संकल्प अजातशत्रु हो
फ़र्ज़ की पुकार पर
तन, मन सभी को वार कर
अरिहंत तुम बढ़े चलो
अदम्य हौंसला रहें
अटल, अचल, निश्चल रहें
प्रातः की किरण तलक
लड़ो तुम अंधकार से
विजय श्री तुम्हारी हो
मां भारती बलिहारी हो।